गणेश विसर्जन 2025 का महत्व, विधि और पर्यावरण अनुकूल तरीकों की जानकारी|
श्री गणेश विसर्जन का परिचय
गणेश विसर्जन हिन्दू धर्म का एक विशेष धार्मिक आयोजन है, जो गणेश चतुर्थी के अंत में, अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाता है। यह वह भावनात्मक क्षण होता है जब श्रद्धालु अपने प्रिय गणपति बप्पा को विदा करते हैं और अगले वर्ष फिर से आने की प्रार्थना करते हैं।
विसर्जन 2025 की तिथि
तिथि गणेश विसर्जन 2025 में सोमवार, 6 सितंबर को मनाया जाएगा। यह गणेश चतुर्थी के 10वें दिन, अनंत चतुर्दशी के शुभ अवसर पर किया जाएगा।
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श्री गणेश विसर्जन का धार्मिक महत्व
गणेश विसर्जन का अर्थ है भगवान गणेश की प्रतिमा को पानी में प्रवाहित करना, जो जीवन के चक्र और प्रकृति से एकता का प्रतीक है। विसर्जन के साथ यह मान्यता जुड़ी है कि भगवान गणेश सभी भक्तों के विघ्नों को हरकर कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान करते हैं।
विसर्जन के समय बोले जाने वाले मंत्र:
गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ
विसर्जन की विधि (Ganesh Visarjan Vidhi)
1. पूजा और आरती:
विसर्जन से पहले घर या पंडाल में अंतिम पूजा की जाती है। गणेश जी की आरती, पुष्पांजलि और भोग अर्पित किया जाता है।
2. प्रदक्षिणा और विदाई:
परिवारजन गणेश जी की मूर्ति की परिक्रमा करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं।
3. शोभायात्रा:
भक्तगण ढोल-नगाड़ों और जयकारों के साथ मूर्ति को जल स्रोत तक ले जाते हैं।
4. विसर्जन:
मूर्ति को शांत भाव से जल में प्रवाहित किया जाता है, यह विश्वास रखते हुए कि भगवान अगले वर्ष फिर से पधारेंगे।
Kali Mata kavach path ।। कीलकम स्त्रोतं ।
पर्यावरण अनुकूल गणेश विसर्जन
पिछले वर्षों में इको-फ्रेंडली विसर्जन की ओर ध्यान बढ़ा है। पारंपरिक प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) की मूर्तियां जल प्रदूषण का कारण बनती हैं। इसलिए अब लोग अपना समर्थन दे रहे हैं|
1. मिट्टी की मूर्तियों
2. घरों में बाल्टी या टब में विसर्जन
3. सामूहिक कृत्रिम विसर्जन टैंक
4. सामूहिक कृत्रिम विसर्जन टैंक यह कदम प्रकृति और नदियों को सुरक्षित रखने की दिशा में बहुत प्रभावी है।
विसर्जन का भावनात्मक पक्ष
गणेश विसर्जन केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव भी है। श्रद्धालु गणपति बप्पा से विदा लेते समय भाव-विभोर हो जाते हैं। यह क्षण हमें सिखाता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, और हर अंत एक नए आरंभ की शुरुआत होता है।
निष्कर्ष
गणेश विसर्जन 2025 सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था, जिम्मेदारी और प्रकृति के प्रति सजगता का प्रतीक है। आइए, इस बार हम सभी मिलकर ईको-फ्रेंडली विसर्जन को अपनाएं और अपने त्योहार को और भी पवित्र बनाएं।