Maa Baglamukhi Raksha Kavach ।। मां बगलामुखी रक्षा कवच हिंदी अर्थ सहित
परिचय
मां बगलामुखी प्रकटय भगवान विष्णु द्वारा हुआ था। कहा जाता है। सतयुग में एक महाविनाशकारी ब्रह्मांडीय तूफान आया था,
जिससे संपूर्ण सृष्टि मे हाहाकार मच गई थी ।
तब भगवान विष्णु व अन्य देवता बहुत चिंतित हो भगवान शिव की शरण मे जाते है। भगवान शिव देवताओं को
देवी आदि शक्ति की शरण मे जाने को कहते है।
प्रकटन :-
भगवान विष्णु ने सौराष्ट्र क्षेत्र के हरिद्रा सरोवर के पास कठोर तप किया था. तब देवी शक्ति प्रसन्न हो और
बगलामुखी के रूप में प्रकट होकर, वरदान देती है। तूफान को स्तंभ कर सृष्टि की रक्षा करती है।
मां बगलामुखी रक्षा कवच :-
कवच का पाठ करने से मां बगलामुखी आपकी हर तरफ से रक्षा करती है। किसी भी तरह का किया-कराया,
भूत-प्रेत, जादू-टोना, नष्ट हो जाता है। आपको किसी भी शत्रु का भय नही रहता। आपके सारे शत्रु मित्र बनने
लग जाते है। आगे पढ़े मां बगलामुखी रक्षा कवच :-
|| मां बगलामुखी रक्षा कवचम् आरम्भ ||
बगला मे शिरः पातुः ललाटं ब्रह्मसंस्तुता ।
बगला मे भ्रुवौ नित्यं कर्णयोः क्लेशहारिणी. ।। 1 ।।
बगला मेरे शिर की सुरक्षा करे और ब्रह्मा के द्वारा स्तवन की हुई मेरे ललाट का त्राण करे।
मेरी भ्रूओं को बगला तथा क्लेश हारिणी मेरे कानों की सुरक्षा करे ।।
त्रिनेत्रा चक्षुषी पातु स्तम्भिनी गण्डयोस्तथा ।
मोहिनी नासिकां पातु श्री देवी बगलामुखी. ।। 2 ।।
नेत्र वाली देवी चक्षुओं की रक्षा करे और स्तम्भिनी नित्य ही मेरे गण्डों का त्राण करे।
मोहिनी श्री देवी बगलामुखी नासिका का परित्राण करे ।।
ओष्ठर्योदुर्धरा पातु सर्वदन्तेषु चञ्चला ।
सिद्धान्नपूर्णा जिह्वायां जिह्वाग्रं शारदाम्बिके. ।। 3 ।।
दुर्धरा मेरे ओष्टों की रक्षा करे तथा चञ्चला सब दाँतों की रक्षा करे ।
मेरी जिह्वामें सिद्धा न्नपूर्ण रक्षा करें तथा जिह्वाके अग्रभाग में शारदा और अम्बिका त्राण करें ।।
अक्लमषा मुखे पातु चिबुके बगलामुखी ।
धीरा मे कण्ठदेशे तु कण्ठाग्र कालकर्षिणी. ।। 4 ।।
मेरे मुख की सुरक्षा अकल्मषा करे चिबुक की बगलामुखी सुरक्षा करे ।
मेरे कण्ठ देश में धीरा रक्षा करें और कालकर्षिणी कण्ठ के अग्रभाग में रक्षा करे ।।
शुद्धस्वर्णनिभा पातु कण्ठमध्ये तथाऽम्बिका ।
कण्ठमूलं महाभोगा स्कन्धौ शत्रु विनाशिनी. ।। 5 ।।
शुद्ध सुवर्ण के सदृश कण्ठ के मध्य में सुरक्षा करे तथा अम्बिका भी परित्राण करे ।
महाभोगा कण्ठ मूल में तथा शत्रु विनाशिनी दोनों स्कन्धों की रक्षा करे।।
भुजा मे पातु सततं बगला सुस्मिता परा ।
बगला मे सदा पातु कर्पू रे कमलोद्भवा. ।। 6 ।।
मेरी दोनों भुजाओं की सुरक्षापरा सुस्मिता बगला निरन्तर करे ।
कमलोद्भवा बगला सदा मेरे कर्पूरोंकी रक्षा करे ।।
रक्षा कवचम् जारी :-
बगलाऽम्बा प्रकोष्ठौ तु मणिबन्धं महाबला ।
बगला श्रीर्हस्ततोश्च कुरुकुल्ला कराङ्गुलिम्. ।। 7 ।।
प्रकोष्ठों की रक्षा अम्बा बगला करे और महाबला मणिबन्ध में त्राण करे ।
बगला और श्री हाथों का त्राण करे एवं कुरु- कुल्ला करों की रक्षा करे ।।
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नखेषु वज्रहस्ता च हृदये ब्रह्मवादिनी ।
स्तनी मे मन्दगमना कुदयोर्योगिनी तथा. ।। 8 ।।
वज्र हस्ता नखों में त्राण करें तथा ब्रह्मवादिनी हृदय में रक्षा करें ।
मन्द गमना मेरे स्तनों की सुरक्षा करे तथा योगिनी कुक्षियों का त्राण करें ।।
उदरं बगला माता नाभि ब्रह्मास्त्रदेवताः ।
पुष्टि मुद्गरहस्ता च पात नो देववन्दिता. ।। 9 ।।
बगला माता उदर का और ब्रह्मास्त्र देवता नाभि का परित्राण करें ।
देवोंके द्वारा वन्दिता मुद्गर हाथोंमें धारण करने वाली हमारी पुष्टि की सुरक्षा करें।।
पार्श्वयोर्हनुमद्वन्द्या पशुपाशविमोचनी ।
करौ रामप्रिया पातु’उरुयुग्मं महेश्वरी. ।। 10 ।।
हनुमानजी के द्वारा वन्द्यमाना पशुपाश विमोचनी दोनों पार्श्वो का त्राण करें ।
रामप्रिया दोनों करों की रक्षा करे और महेश्वरी ऊरुओं के युग्म का त्राण करें।।
रक्षा कवच जारी :-
भगमाला तु गुह्यं मे लिंगं कामेश्वरी तथा ।
लिंगमुले महाक्लिन्ना वृषणौ पातु दूतिका. ।। 11 ।।
मेरे गुह्य को भग- माला सुरक्षित करे तथा लिंग की कामेश्वरी रक्षा करे ।
लिंग के मुख को महाक्लिन्न रक्षाकरे और दूतिका दोनों वृषणोंकी रक्षा करें।।
बगला जानुनी पातु जानुयुग्मं च नित्यशः ।
जङ्घे पातु जगद्धात्री गुल्फौ रावणपूजिता. ।। 12 ।।
बगला देवी जानुओं की तथा जानुयुग्म की रक्षा करें ।
जगद्धात्री जंघाओं की और रावणपूजिता दोनों गुल्फों की सुरक्षा करें ।।
चरणौ दुर्जया पातु पीताम्बरा चरणांगुलीः ।
पादपृष्ठं पद्महस्ता पादाधश्चक्रधारिणी. ।। 13 ।।
दुर्जया चरणोंकी और पीताम्बर चरणों की अंगुलियों की रक्षा करें ।
पद्महस्ता पादों के पृष्ठ का और चक्र धारिणी पादोंके नीचे के भागका संरक्षण करे ।।
सर्वागं बगला देवी पातु श्रीबगलामुखी ।
ब्राह्मी मे पूर्वतः पातु माहेशी वह्निभागतः ।।14 ।।
श्रीबगला- मुखी बगला देवी सर्वाङ्ग की सुरक्षा करें।
ब्राह्मी मेरी पूर्व दिशा में रक्षा करे आग्नेयी में माहेशी रक्षा करे।।
Navratri Poojan Vidhi | नवरात्रि पूजन विधि
कौमारी दक्षिणे पातु वैष्णवी स्वर्गमार्गतः ।
ऊर्ध्वं पाशधरा पातु शत्रु जिह्वाधरा ह्यधः ।। 15 ।।
कौमारी दक्षिण में रक्षा करे वैष्णवी स्वर्ग मार्ग से रक्षा करे, उर्ध्व में पाशधरा रक्षा करे।
अधोभाग में शत्रु की जिह्वा को धारण करने वाली रक्षा करे।।
रक्षा कवचम् जारी :-
रणे राजकुले वादे महायोगे महाभये ।
बगला भैरवी पातु नित्यं क्लींकाररूपिणी. ।। 16 ।।
रणक्षेत्र में, राज- कुल, वाद में, महायोगमें और महाभयमें।
बगला भैरवी क्लींकाररूपिणी नित्य ही परित्राण करें.।।
इत्येवं वज्रकवचं महाब्रह्मास्त्रसंज्ञकम् ।
त्रिसन्ध्यं यः पठेद् धीमान् सर्वेश्वर्यमवाप्नुयात्. ।। 17 ।।
इस प्रकार से इस ब्रह्मास्त्र संज्ञावाले वज्रकवच का जो धीमान् पुरुष।
तीनों संन्याकालों में नित्य नियम से इसका पाठ किया करता है वह सभी प्रकार के ऐश्वर्य को प्राप्त कर लिया करता है ।।
न तस्य शत्रवः केऽपि सखायः सर्व एव च ।
बलेनाकृष्य शत्रु स्यात् सोऽपि मित्रत्वमाप्नुयात्. ।। 18 ।।
उसके कोई भी शत्रु समुत्पन्न नहीं होतेहैं और सभी उसके सखा ही होते हैं ।
वह शत्रु को भी बल से आकर्षित कर लेता है और वह शत्रु भी मित्र भाव को प्राप्त हो जाया करता है ।।
शत्रुत्वे मरुता तुल्यो धनेन धनदोपमः ।
रूपेण कामतुल्यः स्याद् आयुषा शूलधृक्समः ।। 19 ।।
इसका पाठ करने वाला शत्रुता ‘ में मरुत के तुल्य होता है और धनके द्वारा कुबेर के तुल्य होता है ।
रूप सौन्दर्य में कामदेव के समान और आयु से के दृश्य हो जाता है ।।
सनकादिसमो धैर्ये श्रियां विष्णुसमो भवेत् ।
तत्तुल्यो विद्यया ब्रह्मन् यो जपेत् कवचं नरः ।। 20 ।।
धैर्यमें सनकादि के समान हो जाता है और बुद्धि में भगवान विष्णु के तुल्य हो जाया करता है ।
हे ब्रह्माजी विद्या से भी उसी के सदृश हो जाया करता है जो मनुष्य इस कवच का जप किया करता है ।।
कनकधारा स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ सहित
नारी वापी प्रयत्नेन वाञ्छितार्थमवाप्नुयात् ।
द्वितीया सूर्यवारेण यदा भवति पद्मभूः ।। 21 ।।
अथवा नारी हो वह भी इसके पाठ करने से अपने मनोवांछित अर्थ की प्राप्ति कर लिया करती है ।
द्वितीया सूर्यबार से जब पद्मभू होती है।।
रक्षा कवचम् जारी :-
तस्यां जातं शतावृत्या शीघ्रं प्रत्यक्षमाप्नुयात् ।
याता तरीयं संध्यातां भू शय्यायां प्रयत्नतः ।। 22 ।।
उसमें उत्पन्न सौ आवृत्तिसे शीघ्र ही प्रत्यक्ष को प्राप्त होती है ।
संध्या में तुरीय को गई हुई प्रयत्न से भूशाया में रहकर।।
सर्वान् शत्रून् क्षयं कृत्वा विजयं प्राप्नुयात् नरः ।
दारिद्रयान् मुच्यते चाऽऽशु स्थिरा लक्ष्मीर्भवेद् गृहे. ।। 23 ।।
समस्त शत्रुओं का क्षय करके नर विजय का लाभ किया करता है ।
और शीघ्र ही दरि- द्रता से मुक्त हो जाया करता है और फिर लक्ष्मी घर में सुस्थिर हो जाती है ।।
सर्घान् कामानवाप्नोति सविषो निर्बिषो भवेत् ।
ऋणं निर्मोचनं स्याद् वै सहस्रावर्तनाद् विधेः ।। 24 ।।
सभी कामनाओं को प्राप्त करता है तथा विष से युक्त भी निर्विष हो जाता है ।
हे ब्रह्मन् ! एक सहस्र आवृत्ति के करने से ऋणसे छुटकारा प्राप्त होता है ।।
रक्षा कवचम् जारी :-
भूतप्रेतपिशाचादिपीडा तस्य न जायते ।
द्यर्मणिर्भ्राजते यद्वत् तद्वत् स्याच्छ्रीप्रभावतः ।। 25 ।।
उसकी फिर भूत-प्रेत और पिशाच आदि की पीड़ा निश्चय ही कभी – कभी नहीं होती है ।
श्री के प्रभाव से जिस प्रकार भगवान् भास्कर चमका करते हैं वह भी वैसे ही दीप्तिमान् हो जाता है ।।
स्थिराभया भवेत् तस्य यः स्मरेद् बगलामुखीम् ।
जयदं बोधदं देवि कामधुक् देहि मे शिवे. ।। 26 ।।
जो बगलामुखी का स्मरण किया करता है उसको वह स्थि- राभया होती है ।
यह कहना चाहिए कि हे शिव ! जय देने वाला और मुझे अमुक कामना का प्रदान करो ।।
जपस्यान्ते स्मरेद् यो वै सोऽभीष्टफलमाप्नुयात् ।
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम्. ।। 27 ।।
जापके अन्त में जो बगलामुखी का स्मरण किया करता है, वह निश्चय अपना अभीष्ट फल प्राप्त कर लेता है ।
इस कवच का ज्ञान न प्राप्त करके जो भी बगलामुखी के मन्त्र का जप करता है।।
न स सिद्धिनवाप्नोति साक्षाद् वै लोकपूजितः।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन कवचं ब्रह्मतेजसम्. ।। 28 ।।
कभी भी सिद्धि की प्राप्ति नहीं किया करता है, चाहे वह साक्षात् लोक द्वारा पूजित भी क्यों न होवे ।
उस कारण से सब प्रकार के प्रयत्न से इस ब्रह्म तेज वाले कवच का पाठ अवश्य ही करना चाहिए ।।
नित्यं पदाम्बुजध्यानात् महेशानसमो भवेत् ।
नित्य प्रतिपदाम्बुओं के ध्यानसे मनुष्य महेशान के ही समान हो जाया करता है ।
॥ इति श्रीदक्षिणामूर्तिसहितायां रक्षा कवचम् समाप्तम् ॥