ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम || Rin Mochan Mangal Stotra
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः । स्थिरासनो महाकायः सर्वकामविरोधकः ॥ 1 ॥
1. मंगल, 2. भूमि पुत्र, 3. ऋणहर्ता, 4. धनप्रद, 5. स्थिरासन, 6. महाकाय, 7. सर्वकामविरोधक ।
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः । धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः ॥ 2 ॥
8. लोहित, 9. लोहिताक्षश्च, 10. सामगानां कृपाकर (सामग ब्राह्मणों के ऊपर कृपा करने वाले),
11. धरात्मज, 12. कुज, 13. भौम, 14. भूतिद (ऐश्वर्य को देने वाले), 15. भूमिनन्दन (पृथ्वी को आनन्द देने वाले)।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः । वृष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः ।। 3 ।।
16. अंगारक, 17. यम, 18. सर्व रोगापहारक अर्थात् सम्पूर्ण रोगों को दूर करने वाले, 19. वृष्टिकर्ता (वृष्टि करने वाले), 20. वृष्टिहर्ता
(वृष्टि को न कर अकाल डालने वाले), तथा 21. सर्वकाम फलप्रद (सम्पूर्ण कामनाओं के फल को देने वाले)।
एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् । ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥ 4 ॥
मंगल के उपर्युक्त (अर्थात् इक्कीस) नाम को जो व्यक्ति श्रद्धा से पढ़ते हैं, उनको ऋण-कर्ज नहीं होता और वे लोग शीघ्र
ही धन को प्राप्त करते हैं । धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्ति-समप्रभम् । कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ।। 5 ।।
धरणी (पृथ्वी) के गर्भ से उत्पन्न, बिजली के समान कान्ति से युक्त, शक्ति को धारण करने वाले, कुमार मंगल को मैं प्रणाम करता हूँ।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः । न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पापि भवति क्वचित् ।। 6 ।।
Rin Mochan Mangal Stotra
मनुष्यों को इस मंगल-स्तोत्र का पाठ हमेशा करना चाहिए। जो लोग इस मंगल स्तोत्र का पाठ करते हैं, उन्हें मंगल के अरिष्ट की
थोड़ी सी पीड़ा नहीं होती। अङ्गारक महाभाग भगवन् भक्तवत्सल । त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥ 7 ॥
हे अंगारक, महाभाग, भगवान्, भक्त वत्सल, भौम ! आपको हम प्रणाम करते हैं। हमारे पूर्ण ऋण
(कर्ज) को आप दूर कीजिए। ऋणरोगादिदारिद्र्यं ये चान्ये चापमृत्यवः । भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥ 8 ॥
ॠण, रोग, दरिद्रता तथा अन्य अपमृत्यु, भय, क्लेश तथा मनस्ताप मेरे सदैव दूर हो जायें। अतिवक्रदुराराध्य भोगमुक्तजितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥ 9 ॥
अतिवक्र, दुराराध्य भगवान् मंगल, आप प्रसन्न होने पर साम्राज्य दे सकते हो, पर नाराज होने पर तुरन्त ही साम्राज्य को
नष्ट भी कर देते हो। विरिञ्चशक्र विष्णुनां मनुष्याणां तु का कथा । तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ।। 10 ।।
हे महाराज! आप नाराज होने पर ब्रह्मा, इन्द्र तथा विष्णु के भी साम्राज्य सम्पत्ति को नष्ट कर सकते हो फिर मनुष्य की तो बात ही क्या है।
इस प्रकार के पराक्रम से युक्त होने के कारण आप महाबलवान् तथा महाराज हैं। पुत्रान् देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः । ऋणदारिद्र्यदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ।। 11 ।।
kanakadhara stotram in hindi | कनकधारा स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ सहित
हे भगवन्! आप मुझे पुत्र दो, मैं आपकी शरण हूँ। ऋण, दारिद्रय, दुःख तथा शत्रु के भय से मुझे मुक्त करो ।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् । महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ।। 12 ।।
इन बारह श्लोकों वाले इस ऋणमोचक मंगल- स्तोत्र से जो लोग मंगल की स्तुति करते हैं, उनको प्रचुर-भरपूर लक्ष्मी
की प्राप्ति होती है, वह इस पृथ्वी तल में दूसरा कुबेर तथा सदा युवा बना रहता है
।। इति ऋणमोचक मङ्गल स्तोत्रम् समाप्त।।