कनकधारा स्तोत्रम् हिन्दी अर्थ सहित | kanakadhara stotram in hindi
परिचय
जीवन में आर्थिक तंगी को लेकर हम सभी बहुत परेशान रहते हैं। धन प्राप्ति के लिए हरसंभव व श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं।
धन प्राप्ति और धन संचय के लिए कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से चमत्कारिक रूप से लाभ प्राप्त होता है।
आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित यह स्तोत्र न केवल धन धान्य दाता है बल्कि ऋण मुक्ति में सहायक है। श्रद्धा और विधि
विधान से इस कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, इस पाठ के प्रभाव से आदि गुरु शंकराचार्य ने स्वर्ण वर्षा संभव की थी।
ऋण ग्रस्त व्यक्ति को इस स्तोत्र का पाठ, भगवती के चरणों में बैठकर करना चाहिए। जहां इस स्तोत्र के पाठ से साधक
पर चढ़ा ऋण उतर जाता है। वहीं अधिकारी व्यक्ति द्वारा दिए ऋण की वापसी का योग भी बनता है।
श्री कनकधारा स्तोत्र ( kanakadhara stotra)
अङ्गं हरे: पुलक भूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ।। 1 ।।
• जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमालतरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्री हरि के रोमांच से सुशोभित श्री अंगों
पर निरन्तर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, सब मंगलों की देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्ष
लीला मेरे लिये मंगलदायक हो।
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारे: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ।। 2 ।।
• जैसे भ्रमरी कमल पर मंडराती है, उसी प्रकार मुरशत्रु श्रीहरि के मुख की तरफ बार-बार प्रेम से जाती है और लज्जा के कारण
लौट आती है, वह समुद्र कन्या लक्ष्मी की मनोहर दृष्टि माला मुझे धन प्रदान करे।
विश्वामरेन्द्र पदविभ्रमदानदक्ष मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धमिन्दी वरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥
• जो सब देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ हैं, मुरारि श्रीहरि को भी अधिक आनन्द देती है
तथा जो नीलकमल के समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मी जी के अधखुले नयनों की दृष्टि मुझ पर थोड़ी-सी अवश्य पड़े।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द – मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ।। 4 ।।
• भगवान् विष्णु की धर्म पत्नी श्री लक्ष्मी जी का नेत्र हमें ऐश्वर्य देने वाला हो, जिसकी पुतली तथा बरौनियां अनंग के वशीभूत हो,
अधखुले नयनों से देखने वाले आनन्दकन्द श्री मुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती है।
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ।। 5 ।।
• जो भगवान् मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मण्डित वक्ष:स्थल में इन्द्र नीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके
भी मन में काम (प्रेम) का संचार करने वाली है, वह कमल कुंज वासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।
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श्री कनकधारा स्तोत्रम्
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरेस्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ।। 6 ।।
• जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभ शत्रु श्री विष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर
वक्षःस्थल पर प्रकाशित होती है, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनिन्दत किया है तथा जो समस्त लोकों की
जननी है, उन भगवती लक्ष्मी की पूज्यनीय मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे ।
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान् माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ।। 7 ।।
• समुद्र-कन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय
भगवान् मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहां मुझ पर पड़े।
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा- मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ।। 8 ।।
• भगवान् नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म रूपी घाम को चिरकाल के लिये
दूर हटा कर विषाद में पड़े हुए मुझ दीन रूपी चातक-पोत पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्रदृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ।। 9 ।।
• विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं,
उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित. कमल-गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।
स्तोत्रम्
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ।। 10 ।।
• जो सृष्टि-लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्म-शक्ति) के रूप में स्थित होती है, पालन-लीला करते समय भगवान् गरुड़ ध्वज की
सुन्दरी पत्नी लक्ष्मी या (वैष्णवी शक्ति) के रूप में विराजमान होती हैतथा प्रलय- लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा)
अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्र शक्ति) के रूप में अवस्थित होती है, उन त्रिभुवन के एकमात्र गुरु भगवान् नारायण
की नित्य-यौवना प्रेयसी श्री लक्ष्मी जी को नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ।। 11 ।।
• मातः! शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धु रूप रति के रूप में आपको
नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तम-प्रिया पुष्टि को नमस्कार है।
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै नमोऽस्तु।
सोमामृतसोदरायै नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ।। 12 ॥
• कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीर सिन्धु सम्भूता श्री देवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहिन को
नमस्कार है। भगवान् नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥ 13 ॥
• कमल सदृश नेत्रों वाली माननीया माँ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करने वाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द
देने वाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। वह सदा मुझे अवलम्बन करे। मुझे
आपकी चरण वन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।
Madanan Mata Sadhana ।। मदानन माता साधना।
श्री कनकधारा स्तोत्रम्
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
संतनोति मैं प्रवचनाङ्गमानसैस्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥ 14 ॥
• जिनके कृपा-कटाक्ष के लिये की हुई उपासना उपासक के लिये सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है,
श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूं।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ।। 15 ।।
• भगवती हरि प्रिये ! तुम कमलवन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में लीला-कमल सुशोभित है।
तुम अत्यन्त उज्जवल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान
करने वाली देवी, मुझ पर प्रसन्न होओ।
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ।। 16 ।।
• दिग्गजों द्वारा सुवर्ण-कलश के मुख से गिराये गये आकाश-गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके |
श्रीअंगों का अभिषेक (स्नान कार्य) सम्पादित होता । है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान् विष्णु की गृहिणी
और क्षीर सागर की पुत्री उन जगजननी लक्ष्मी को मैं प्रात:काल प्रणाम करता हूं।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ।। 17 ।।
• कमल नयन केशव की कमनीय कामनी कमले ! मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूं, अतएव तुम्हारी कृपा का
स्वाभाविक पात्र हूं। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल-तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयों त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ।। 18 ।।
• जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवन जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर
महान् गुणवान और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान् पुरुष भी उनके मनोभाव को जानने के लिये उत्सुक रहते हैं।
।। इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्यविरचित कनकधारास्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ।।