दुर्गा सप्तश्र्लोकी पाठ हिंदी अर्थ सहित
दुर्गा सप्तश्र्लोकी पाठ बहुत ही चमत्कारी व प्रभावशाली है। इस का पाठ पुण्य, आपको दुर्गा! सप्तशती पाठ के बराबर मिलता है। इसलिए आपको रोज इसका पाठ करना चाहिए ।
परिचय:-
इस पाठ के बारे मे मां पार्वती! स्वयं अपने मुख से भगवान शिव को बताती है। कलयुग मे जो भी मनुष्य सप्तश्र्लोकी का पाठ करेगा मैं उसके सारे मनोरथ पूर्ण करूगीं। इस पाठ का परिचय स्वयं मां पार्वती! देती है।
दुर्गा सप्तश्र्लोकी पाठ के लाभ
1.सर्वकार्य सिद्धि:
सप्तश्लोकी का नित्य नियम श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से हर कार्य मे सफलता मिलती है, व आपके जीवन मे आने वाली समस्त बाधाएँ दूर हो जाती है।
2. धन मे वृद्धि:
मां भगवती की कृपा से व्यापार मे प्रगति व धन मे लाभ होता है। घर से दरिद्रता चली जाती है।
3. भय और संकट से मुक्ति:
अगर आप रोजाना दुर्गा सप्तश्र्लोकी की पाठ नियम से करते है, तो भय से मुक्ति प्राप्त होती है। आपके जीवन से संकट हमेशा के लिए दूर हो जाते है।
4. रोग पीड़ा से मुक्ति:
आप के घर परिवार मे कोई भी सदस्य हमेशा बीमारियों से घिरा रहता हो, तो उसके पास दर्गा सप्तश्र्लोकी का पाठ करने से रोग व पीड़ा का नाश होता है।
5. नवरात्रि मे विशेष लाभ:
श्री दुर्गा सप्तश्र्लोकी का नवरात्रि मे पाठ करने से बहुत चमत्कारी लाभ देखने को मिलते है। नवदुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। आगे पढ़े दुर्गा सप्तश्र्लोकी पाठ :-
दुर्गा सप्तश्लोकी पाठ
शिव उवाच:-
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ।।
शिव जी बोले:- हे देवि! तुम भक्तों के के लिए सुलभ हो और समस्त कर्मों का विधान करने वाली हो । कलियुग में कामनाओं की सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा सम्यक रूप से व्यक्त करो।
देव्युवाच:-
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ।।
देवी ने कहा: हे देव! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है। कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाली जो साधन है वह बतलाऊँगी, सुनो ! उसका नाम है “अम्बा दुर्गा स्तुति” ।
विनियोग:-
ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः,
अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
विनियोगः इस दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मंत्र के नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप छंद हैं, श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्री दुर्गा की प्रसन्नता के लिए सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ में इसका विनियोग किया जाता हैं।

दुर्गा सप्तश्लोकी पाठ आरम्भ
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ 1॥
वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रय दुःख भयहारिणि का त्वदन्या ।
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥2॥
माँ दुर्गे : आप पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि! आपके सिवा दूसरा कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो ।
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥3॥
नारायणी: तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो । सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हे नमस्कार है।
शरणागत दीनार्तपरित्राण परामणे ।
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥
शरण में आये हुए दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवि! तुम्हें नमस्कार है।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समम्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥
सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो तुम्हें नमस्कार है।
रोगानशेषानपहसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥ 6॥
देवि तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो।
जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपात्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण
देने वाले हो जाते हैं।
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद् वैरी विनाशनम् ॥7॥
सर्वेश्वरी: तुम इसी प्रकार तीनों लोकों के समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
पाठ की विधि:-
श्री दुर्गा सप्तश्र्लोकी का पाठ आप सुबह- शाम किसी भी समय कर सकते है। किसी भी देवी का चित्र लेकर उसके सामने धूप-दीप लगाकर पाठ आरम्भ करें। पाठ के अंत मे मेवा, मिश्री, लड्डू व बूंदी का भी भोग लगा सकते है।
॥ इति श्री सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ सम्पूर्ण ॥
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